मैं प्रतिभाओं का सम्मान करता हूं लेकिन "बसपन का प्यार" गाने वाले बालक को जितना सम्मान मिला वह सम्मान यदि "सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा" गाने वाले बालक को भी मिलता तो शायद देश की नवीन पीढ़ी को एक सही दिशा में प्रेरणा मिल सकती थी।
क्योंकि वर्तमान में देश को बचपन का प्यार ढूंढने वालों की नहीं बल्कि देश प्रेम में अपना बचपन, जवानी और जीवन लुटा देने वालों की आवश्यकता है।
बचपन - जहां बचपन की शुरुआत मिट्टी में खेलने से, मां की लोरियां सुनकर सोने से होती थी। बच्चों के हंसने और रोने के कारण भी कई बार खुशी देते थे क्योंकि वे माता - पिता के दूर या पास होने से जुड़े होते रहते थे लेकिन वर्तमान में बचपन की शुरुआत भले ही चमकीले फर्श पर होती है लेकिन जब मासूम के हाथ में मोबाइल देने से हंसना और लेने पर रोना, इस पर तो कोई प्रतिक्रिया दे पाना संभव नहीं है।
• निजी विचार • बचपन फरार •
— पुखराज तेली #poetpukhrajteli
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