मैं तो एक पेड़ हूं, घर के बाहर रहता हूं,
धूप, गर्मी, सर्दी, बारिश सब कुछ सहता हूं, हर मौसम, हर दिन, हर क्षण खुद से यह कहता हूं,
मैं तो बाहर खड़ा हूं और अकेला ही रहता हूं,
अंदर आने की इजाजत नहीं है और बाहर मेरी हिफाजत नहीं है, पानी की कमी से मरता हूं, मिल जाए पानी तो निखरता हूं,
कहना चाहता हूं सबसे पर कुछ कह नहीं पाता हूं,
जो आता है मेरी शरण में, उसे छांव में बैठाता हूं,
पर मैं खुद धूप में जलता जाता हूं,
भले मुझे मिले ना भोजन सबका जीवन बचाता हूं,
और सब को जीवन देते देते खुद ही मर जाता हूं,
कोई सुन ले पीड़ा मेरी भी यह चाहता हूं,
हर आने जाने वाले व्यक्ति को अपना दर्द सुनाता हूं,
भूख से व्याकुल रहकर भी मैं फल तुम्हें दे जाता हूं,
कुछ जल की बूंदों की खातिर मुंह ताकता रह जाता हूं,
प्यास नहीं पानी की बस अपनी रक्षा चाहता हूं,
खुद भूखा रहकर भी तुमको खूब खिलाता हूं,
आया तुमसे भी बाद में पर पिता का फर्ज निभाता हूं,
ले चले थे ऋण बीज जो वही कर्ज चुकाता हूं,
बार-बार मर कर भी मैं वापस जी जाता हूं,
अब मैं सूखा पेड़ हूं पर जीवंत कहानी सुनाता हूं ।
~ पुखराज तेली #pukhrajteli
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